गुरु की महिमा और शिक्षा का उद्देश्य
10:57 AM
गुरु और समाज के सामने सबसे बडा प्रश्न है, शिक्षा किसलिए दी
जाये ? शिक्षा का जैसा उद्देश्य होगा, तदानुसार ही पाठ्य विषयो का चुनाव होगा पर शिक्षा का उद्देश्य
स्वतंत्र नही है | वह इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य-मनुष्य का
सबसे बडा पुरुषार्थ क्या है | मनुष्य को उस पुरुषार्थ की सिद्धि के योग्य बनाना ही शिक्षा का
उद्देश्य है |
पुरुषार्थ दार्शनिक विषय है, पर दर्शन का जीवन
से घनिष्ठ सम्बंध है | वह थोडे से
विद्यार्थियो का पाठ्य विषय मात्र नही है, प्रत्येक समाज को एक दार्शनिक मत
स्वीकार करना होगा | उसी के आधार पर उसकी राजनीति, सामाजिक और कौटुम्बिक व्य्वस्था का व्यूह खडा होगा |
‘बिगडी बात बने नही, लाख करो किन-किन कोय
रहिमन
बिगडे दूध को, मथे न माखन हाये ||’
जो
व्यक्ति समाज मे अपने वैयक्तिक और सामूहिक जीवन को केवल प्रतीपमान उपयोगिता के
आधार पर चलना चाहेगा, उसको बडी कठिनाइयो का सामना करना पडेगा | एक विभाग
के आदर्श दूसरे विभाग के आदर्श से टकराएंगे जो बात एक क्षेत्र मे ठीक जंचेगी, वही दूसरे क्षेत्र मे अनुचित कहलाएगी और मनुष्य के लिए अपना कर्त्तव्य
स्थित करना कठिन होगा | इसका तमाशा आज दिख रहा है | चोरी करना बुरा है पर पराये देश का शोषण करना बुरा नही है | झूठ बोलना बुरा है पर राजनीति क्षेत्र मे सच पर अडे रहना मूर्खता है | घरवालो के साथ देशवासियो के साथ और पडोसियो के साथ बर्ताव करने के लिये
अलग-अलग आचारवलिया बन गयी है | इससे विवेकशीलता नष्ट हो जाती
है | पग-पग पर धर्म संकट मे पड जाता है |
फिर
न देख कोई सरहद की तरफ अपनी |
वो
सबक देश के दुश्मन को सिखाए हम तुम ||
आत्मा अजर और अमर है | उसने अनंत
ज्ञान, शक्ति और आनंद का भण्डार है |
अकेले ज्ञान कहता भी पर्याप्त हो सकता है, क्योकि जहा ज्ञान
होता है, वहा शांति होती है और अविद्यावशात वह अपने स्वरुप
को भूला हुआ है | इसी से अपने को अल्पज्ञ पाता है | अल्पज्ञता के साथ-साथ शांतिमत्ता आती है और इसका परिणाम दुख होता है | भीतर से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कुछ खोया हुआ हो, परंतु यह समझ नही आता कि क्या खो गया है | नही उसे
खोई हुई वस्तु की, अपने स्वरुप की निरन्तर खोज रहती है |
रहिमन
आंसू नैन ढरि, जिस दुख प्रकट करेई |
जाको
घर से काढिए, क्यो न भेद कह देई ||
आत्म
साक्षात्कार का मुख्य साधन योगाभ्यास है | योगाभ्यास सिखाने का प्रबंध राज्य
नही कर सकता, न पाठशाला का कोई अध्यापक ही इसका दायित्व ले
सकता है | जो इस विद्या का खोजी होगा,
वह अपने लिए गुरु ढूंढ लेगा | यहि समाज और अध्यापक का कर्तव्य है कि व्यक्ति के अधिकारी बनने मे सहायता
दी जाये, अनुकूल वातावरण उत्पन्न किया जाए |
यह
अध्यापक का काम है कि वह अपने छात्र मे चित्र एकाग्र करने का अभ्यास डाले | एकाग्रता
ही आत्मसाक्षात्कार की कुंजी है | एकाग्रता का उपाय यह है कि
छात्र मे मैत्री, करुणा, मुदिता और
उपेक्षा का भाव उत्पन्न किया जाये | उसे निष्काम कर्म मे
प्रवृत्त किया जाए | दूसरे के सुख को देखकर दुखी होना करुणा
है | किसी को अच्छा काम करते देखकर प्रसन्न होना और उसका
प्रोत्साहन करना मुदिता और दुष्कर्म करना उपेक्षा है |
ज्यो-ज्यो यह भाव जागते है, त्यो-त्यो ईर्ष्या-द्वेष की कमी
होती है | निष्काम कर्म भी राग-द्वेष की कमी होती है | निष्काम कर्म भी राग-द्वेष को नष्ट करता है |
सरसति
के भण्डार की, बडी अपूरख बात |
ज्यो
खरचे त्यो-त्यो बढे, बिन खरचे घटि जात ||
कहने
का तात्पर्य यह है कि छात्र के चरित्र को इस प्रकार विकास देना है कि वह मै तू से
उपर उठ सके | जहा तक उपयोग का भाव रहेगा, वहा तक साम्य की
आकांक्षा होगी, परंतु वह वस्तु मेरी होकर रहे, इसी मे संघर्ष और कलह होती है | परंतु सेवा और सुकृत
से संघर्ष नही होता |
रुखा-सूखा
खायके, ठण्डा पानी पीव |
देख
पराई चूपडी मत ललचावे जीव ||
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