कितना बदल गया इंसान
पेड के नीचे पडा उपेषित पत्थर अपने नसीब पर आंसू बहा रहा था | सोच रहा था, कैसा व्यर्थ जीवन है मेरा | न मै किसी के काम आ पा रहा हु , न ही किसी को दिलासा दे पा रहा हू और न किसी के आंसू पोछ पाता हू | जो भी मुझसे ठोकर खाता है , मुझे गुस्से से कोसता आगे बढ जाता है |
गर्मी की भरी दोपहरी थी | गुलमोहर के लाल-लाल फूल झरकर कभी जमीन पर गिरते , कभी उस पत्थर पर | उन फूलो का कोमल स्वयं स्पर्श पा पत्थर अंनदित हो उठा | उसने स्वयं अपना रूप देखा तो अचम्भित हो उठा | अब वह लाल फूलो मे लिपता एक सुंदर आकार का लग रहा था |
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तभी वहा खेल रहे कुछ बालको ने खेल-खेल मे एक छोटा चबुतरा बना , उस पत्थर को चबुतरे पर स्थपित कर दिया | एक दिन गुलमोहर के थोडे ही फूल झरे और पत्थर कही से लाल और कही से काला नजर आने लगा | बच्चो को कुछ अधूरापन लगा तो उन्होने उस पत्थर को सिन्दूर दे रंग दिया |
तभी शाम को मंदिर मे दीया जलाने जा रही महिला ने एक दीया उस पत्थर के पास भी रख दिया | अब उस पत्थर ने भग्वान का रूप ले लिया था | लोग आते-जाते अपना सिर झुकाते और आगे बढ जाते | कुछ लोगो की मन्नते भी पूरी हुई | वे नियमित रूप से फुल चढाने लगे |
धीरे-धीरे गाव के अधिकांश लोगो की आस्था इस पर बढने लगी | थोडे हि समय मे वहा एक मंदिर भी बन गया | एक इंसान कई दिनो से मंदिर आता रहा | बडे भक्ति भाव से वहा हार-फूल चढता , अगरबती जलाता , फिर श्रद्धा भाव से कुछ देर सिर नवाये खडा रहता |
एक दिन आती सम्रधि वह इंसान इसी भगवान की देन समझ रहा था | आज फिर वह इंसान मंदिर आया , भक्ति भाव से पूजा की , बडी देर तक सिर नवाने के बाद वह मंदिर से बाहर आ गया | समीप खडी कार के पास वह जाने लगा तभी एक व्रद्धा लाठी टेकता उसके पास आयी और कातर भाव से बोली -'बेटा जरा मुझे
सडक पार करा दो, मेरा संतुलन कभी-कभी बिगड जाता है | ' इंसान ने व्रद्धा की और देखा लेकिन अनसुनी कर कार का दरवाजा खोलने लगा | व्रद्धा ने धीरे से उसकी बाह पकडकर कहा -"बेटा जरा सुनो, मुझे सडक पार करा दो |" इंसान ने बाह को झटका दिया | व्रद्धा नीचे गिर गयी |
इंसान तो अंदेखा कर कार मे बेठा वहा से चला गया | लेकिन कुछ बच्चो ने मिलकर व्रद्धा को सडक पर करा दी | एक समय साधारन , उपेक्शित पत्थर रहे भगवान विस्फारित नेत्रो से वह ह्रदयविदारक घटना देख थे | वे आश्चार्य से सोचने लगे , प्रक्रति की यह कैसी अनोखी माया है, जो पत्थर था
वह मंदिर मे आकर भगवान बन गया और इंसान मंदिर से बाहर निकलते ही पत्थर बन गया |
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