नये साल पर होने वाले नुकसान पर एक नजर
2:27 PM31 dec की रात विश्व के अधिकांश देशो मे अंग्रेजी नव वर्ष मनाया गया ! यदि इस दिन को पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव की दृष्टि से देखें तो अनुभव होता है की ये इतिहास में काला दिन के रूप में जाना चाहिए। पृथ्वी पर महाविध्वंश की ये रात अत्यंत भयानक होती है जिसकी भयानकता कृत्रिम चकाचोंध में पूरी तरह दब जाती है। ये मैं नही तथ्य कहा रहे हैं।
आइये जानते है उन तथ्य को
2. पयार्वरण संतुलन एवं आवश्यकता की पूर्ति हेतु प्रकृति की अमूल्य देन लाखों निर्दोष पशुओं का भयावह करूँण क्रंदन और रुधिर की नदियाँ शोर-शराबें में कही बहा जायेंगे परंतु धरती माँ का दिल जरूर दहलेग और वो भूकंप, बाढ़, सुनामी के माध्यम से अपना बदला अवश्य लेगी। इतना कम्पन्न और इतना रक्त पुरे विश्व में बहेगा की कई नदियां बन सकती हैं। सिर्फ एक रात में।!!
3. जोर - जोर से कान फाडू अश्लील सब तरह के गाने रात भर बजेंगे। जिनकी फ्रीक्वेंसी इतनी अधिक होगी जो की सामान्य से 20-25 गुना से 50 गुना तक अधिक होगी। लाखों लोग बहरापन के शिकार या अल्प समय में कान के रोगों का शिकार होने,। मानसिक रोगियों की संख्या, मानसिक समस्यों में भरी वृद्धि होगी। सिर्फ एक रात में।
4. हज़ारों करोड़ की आतिशबाजी पुरे विश्व में होगी। जिससे आसमान धुंधला ही नज़र आएगा। लाखों लोग श्वाश संबंधी रोगों से ग्रसित होंगे। जैसा की हर साल बढ़ रही है। सिर्फ एक रात में।
5. करोडो गैलेन पानी शराब में, कबाब पकाने में, उल्टियाँ, गन्दगी धोने में, मांस पकाने से बहाने वाले रक्त को साफ़ करने में बर्बाद किया जायेगा। जिससे कई सालों तक भारत जैसे बड़े देश की जलापूर्ति की जा सकती है। परंतु कई बड़े जल श्रोत इतिहास बानने वाले हैं।
6. इस विनाशकारी जश्न में अकेले भारत में ही 15000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है । इसी प्रकार यदि सभी देशों का खर्च जोड़े तो यह लगभग 120लाख करोड़ हो जाता है। पुरे विश्व में लगभग इतने गरीब लोग हैं जो दो वक्त की रोटी के लिए भी तरसते हैं। उन्हें 1-1 लाख रूपया आसानी से मिल सकता है।
ये तो सीधे तौर पर होने वाली हानि है। यदि इसका सांस्कृतिक, मानसिक, दृस्टि से अप्रत्यक्ष हानियों का अनुमान लग़यें तो नुकसान की कल्पना असंभव ही प्रतीत होती है।
पूरी पृथ्वी पर ये महा विध्वंश होने जा रहा है और न मीडिया को, न सेकुलर्स को, न अवार्ड वापसी गिरोह को, न यु एन ओ को, न w h o को, न मानवअधिकार को, किसी को भी पानी बर्बाद, धन बर्बाद, पर्यावरण प्रदुषण, ध्वनि प्रदूषण नज़र नही आता है। सब और इस दिशा में आश्चर्यजनक चुप्पी है।
उल्टा विरोध के स्थान पर सब प्रचार करते नज़र आ रहे हैं।
उल्टा विरोध के स्थान पर सब प्रचार करते नज़र आ रहे हैं।
आध्यात्मिकता से , पर्यावरण संरक्षण, उच्च सांस्कृतिक विरासत वाले भारतीय पर्वों में जिन्हें सब कुछ नज़र आ जाता है वो आज इस महाविनाश पर चुप क्यों हैं?????
ये दोहरी मानसिकता और नियत में खोट का परिचायक नही है???
ये दोहरी मानसिकता और नियत में खोट का परिचायक नही है???
विचार करें।।।।
-Credit
अनिल आर्य जयपुर
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