The true philosopher In Hindi / सच्चा दार्शनिक

7:30 AM



सच्चा दार्शनिक



एक दिन देवलोक से एक विशेष विज्ञप्ति ने आकाश, पाताल तथा प्रथ्वी तीनो लोको मे हलचल मचा दी | इस विज्ञप्ति के अनुसार अगले सात दिन तक लागतार श्री चंद्रगुप्त जी की प्रयोगशाला के मुख्य द्वार पर किसी भी प्राणी को असुंदर वस्तु देकर उसके स्थान पर सुंदर वस्तु प्राप्त करनी थी, परंतु शर्त यह थी कि वह विधाता कि सत्ता मे विश्वास रखता हो | 

इसकी परीश्रा वही ली जाएगी | बस फिर क्या था ? सभी अपने बदलने की वस्तुओ की सूची बनाने लगे | याद करके सभी ने अपनी उन वस्तुओ को लिखा जो असुन्दर थी | निश्चित तिथि पर देवलोक से विमान भेजे गये जो सुविधापूर्वक सभी को देवलोक पहुचाने लगे | जब सब लोग वहा पंहुच गए तो विधाता ने अपने तीसरे नेत्र की योग द्रष्टि से देखा कि  आने से तो नही बचा | उन्होने देखा कि प्रथ्वी पर एक आदमी आरम से पडा आनंद मे मग्न है | पास जाकर बगवान ने पूछा तात ! तुमने हमारा आदेश सुना | तुम भी चित्रगुप्त के दरबार मे जाकर अपनी कुरूप वस्तुओ को  बदलकर अच्छी वस्तुए क्यो नही ले आते | जानते नही अच्छीवस्तुओ से सम्मान बढता है |


 

वह व्यक्ति बडी नम्रता से बोला –सुना था बगवान | किंतु मुझे तो आपकी बनाई इस स्रष्टि मे कुछ भी असुंदर नही दिखता | जब सभी कुछ सुंदर है और सबमे आपकी ही सत्ता है तो असुंदर कहा रह जाता है | यहा मुझे स्रष्टि का कण-कण सुंदर दिखाई देता है | प्रभु, फिर मै आपकी बनाई चीज को असुंदर कहने का दुस्साहस कैसे कर सकता हू | उसकी को सुनकर प्रभु की नजरो मे एक वही व्यक्ति था जो उसकी कसोती पर खरा उतरा बाकी सबको निराश लोटना पडा |


वही थी एक दार्शनिक की सच्ची विजय जो संसार की कुरूप वस्तुओ मे भी सोंदर्य का दर्शन करे, वही सच्चा दर्शनिक है |



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